पंचायत सीजन 4 रिव्यू: जब 'फुलेरा' की सादगी पर भारी पड़ा राजनीति का दबाव
Panchayat Season 4: पंचायत सीजन 4, जिसे अब Amazon Prime Video पर स्ट्रीम किया जा रहा है, एक ऐसे शो की वापसी है जिसने शुरुआत में ग्रामीण भारत की सादगी, हास्य और मानवीय संबंधों को बड़े ही खूबसूरत ढंग से दर्शाया था। पर अफसोस, इस बार वो जादू कहीं गुम हो गया है।
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Panchayat Season 4 |
राजनीति का वर्चस्व और फुलेरा की खोती पहचान
नई कहानी की शुरुआत उस मोड़ से होती है जहाँ पिछले सीजन का अंत हुआ था, पंचायत चुनावों की घोषणा के साथ। इस बार चुनाव का मुख्य आकर्षण है, मंजू देवी (नीना गुप्ता) बनाम क्रांति देवी (सुनीता राजवार)। इनकी लड़ाई अब लौकी बनाम प्रेशर कुकर में बदल चुकी है, जहाँ लौकी मंजनू देवी का चुनाव चिन्ह है और प्रेशर कुकर क्रांति देवी का। पहली नजर में ये गांव की मासूम राजनीति का मजेदार चित्रण लगता है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, ये ‘ओवरकुक’ हो जाती है।
फुलेरा गांव की वह सरल, सजीव और हंसमुख दुनिया जिसमें हर किरदार दिल जीत लेता था, अब सियासी मोर्चों और प्रतिद्वंद्विता में उलझ गई है।
किरदारों की चमक फीकी पड़ी
श्रृंखला की आत्मा माने जाने वाले पात्र सचिव जी (जितेन्द्र कुमार), प्रधान जी (रघुबीर यादव), विकास (चंदन रॉय) और प्रह्लाद (फैसल मलिक) — इस बार किनारे पर खड़े नज़र आते हैं। पहले जहाँ इनका आपसी तालमेल और संवाद शो की जान होते थे, अब उनकी कहानियां अधूरी और कमजोर लगती हैं।
महिला पात्रों की स्थिति भी कुछ खास नहीं रही। जहाँ पहले मंजनू देवी सत्ता की वास्तविक बागडोर थामने के करीब लगती थीं और रिंकी अपने स्वाभिमान और पहचान के लिए खड़ी होती दिखती थी, वहीं इस सीजन में वे दो कदम पीछे जाती दिखती हैं। क्रांति देवी, जो पहले एक दमदार विरोधी के रूप में उभरी थीं, अब बस औपचारिक रूप में मौजूद हैं।
रिश्तों में मिठास की कमी
पिछले सीजनों में रिंकी और सचिव जी के बीच पनपता रोमांस दर्शकों को भावुक कर देता था, लेकिन इस बार उनके पलों में वह कशिश और मासूमियत नज़र नहीं आती। कुछ सीन तो ऐसे लगते हैं जैसे बस कहानी को आगे बढ़ाने के लिए डाले गए हों।
बढ़ता स्केल, घटती आत्मा
सीजन 4 को स्पष्ट रूप से अधिक गंभीर और व्यापक रूप देने की कोशिश की गई है — लंबी एपिसोड्स, अधिक पात्र, और गहरे राजनीतिक टकराव। लेकिन कहानी का जो सहज प्रवाह पहले था, वह अब टूट गया है। संवादों में पहले जैसी सरलता और गहराई नहीं है और हास्य अब जबरन ठूंसा हुआ लगता है।
निर्माताओं का प्रयास और नतीजा
निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा और लेखक चंदन कुमार ने पंचायत को एक संजीदा ग्रामीण कहानी से राजनीतिक ड्रामा में बदलने की कोशिश की है। यह प्रयोग सराहनीय है, पर इसका निष्कर्ष उतना प्रभावशाली नहीं रहा।
रेटिंग और निष्कर्ष
रेटिंग: 2.5/5
पंचायत कभी ग्रामीण जीवन की मासूम कहानी थी, जहाँ किरदारों के छोटे-छोटे संघर्ष भी बड़े लगते थे क्योंकि उनमें भावनाओं की गहराई थी। सीजन 4 इस आत्मा से भटकता हुआ दिखता है। यह ना तो पूरी तरह से राजनीतिक ड्रामा बन पाता है और ना ही पुरानी सरलता को बरकरार रखता है।
यदि आप पहले के सीजन के प्रशंसक हैं, तो इस सीजन को देखकर थोड़ा सा मन भारी हो सकता है, क्योंकि फुलेरा अब पहले जैसा नहीं रहा।
मुख्य कलाकार:
जितेन्द्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, फैसल मलिक, चंदन रॉय, संविका, दुर्गेश कुमार, सुनीता राजवार, पंकज झा
स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म: Amazon Prime Video
निर्माता: दीपक कुमार मिश्रा और चंदन कुमार
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