Rath Yatra 2025: परंपरा, सुरक्षा और श्रद्धा का अद्वितीय संगम

सदियों पुरानी परंपरा, भक्ति की भावना और आधुनिक तकनीक के संयोग का भव्य उत्सव – पुरी रथयात्रा 2025 कल (27 जून) से प्रारंभ होने जा रही है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विशाल रथों की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक भी है।

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58 दिनों में तैयार होते हैं 45 फीट ऊंचे रथ

पुरी में हर साल तीन नए रथ बनाए जाते हैं – भगवान जगन्नाथ का "नंदीघोष", बलभद्र का "तालध्वज" और सुभद्रा का "दर्पदलन"।
लगभग 200 कारीगर, 5 विशेष प्रकार की लकड़ी से महज 58 दिनों में इन रथों का निर्माण करते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि मापने के लिए स्केल नहीं, बल्कि पारंपरिक छड़ी का प्रयोग होता है। हर रथ 200 टन से अधिक भारी होता है और 45 फीट तक ऊंचे होते हैं। यात्रा समाप्त होने के बाद इन्हें परंपरागत रूप से तोड़ दिया जाता है।


AI और NSG की सुरक्षा में रथयात्रा

इस वर्ष सुरक्षा व्यवस्था में ऐतिहासिक परिवर्तन किए गए हैं।

  • पहली बार नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) की तैनाती की जा रही है।

  • ड्रोन सर्विलांस, AI आधारित भीड़ प्रबंधन और CCTV में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया जाएगा।

  • भीड़ को नियंत्रित करने और मार्ग निर्धारण के लिए चैटबॉट सेवा चालू की गई है, जो यात्रियों को मार्ग, पार्किंग और डायवर्जन की जानकारी देगी।

  • कुल 10,000 पुलिसकर्मी, CRPF, BSF, और रैपिड एक्शन फोर्स की टीमों को तैनात किया गया है।

  • महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष सहायता केंद्र बनाए गए हैं।


भगवान जगन्नाथ की नगरी फिर तैयार

पुरी नगरी पूरी तरह सज चुकी है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि पूरे भारत और दुनिया भर के श्रद्धालुओं के लिए एकता, भक्ति और संस्कृति का उत्सव बन चुका है। जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की यह यात्रा लगभग 3 किलोमीटर लंबी होती है और इसे गुंडिचा यात्रा कहा जाता है।


मुख्य अनुष्ठान और तिथियाँ

  • 12 जून – स्नान पूर्णिमा: 108 कलशों से अभिषेक

  • 13-26 जून – अनवसर काल: भगवान विश्राम में

  • 26 जून – गुंडिचा मार्जना: मंदिर की सफाई

  • 27 जून – रथ यात्रा आरंभ

  • 1 जुलाई – हेरा पंचमी

  • 4 जुलाई – बहुदा यात्रा

  • 5 जुलाई – सुणा बेशा और नीलाद्री विजय


आस्था की जीवंत परंपराएं

  • छेड़ा पहाड़ा: पुरी के गजपति महाराज स्वर्ण झाड़ू से रथों की सफाई करते हैं, जो समाज में समानता का संदेश देता है।

  • रथ खींचना: लाखों श्रद्धालु रस्सियों से रथ खींचते हैं, इसे अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।

  • गुंडिचा यात्रा: यह यात्रा भगवान श्रीकृष्ण के मामा के घर जाने की कथा से जुड़ी है, जो उनके बाल्यकाल का स्मरण कराती है।


इतिहास से आधुनिकता तक

पुरी रथयात्रा की परंपरा 12वीं शताब्दी से चली आ रही है। माना जाता है कि इस आयोजन की शुरुआत राजा इन्द्रद्युम्न ने की थी, जिसे बाद में गजपति राजाओं ने और भव्यता दी।
आज, यह उत्सव टेलीविजन, यूट्यूब और सोशल मीडिया के माध्यम से वैश्विक पहचान प्राप्त कर चुका है।


समापन: नीलाद्री विजय

रथयात्रा का अंतिम दिन नीलाद्री विजय कहलाता है, जब भगवान पुनः श्रीमंदिर में प्रवेश करते हैं। इसके साथ ही रथों का विसर्जन कर अगले वर्ष की तैयारी शुरू हो जाती है।


पुरी रथ यात्रा 2025 एक बार फिर यह सिद्ध करने जा रही है कि भारत की आध्यात्मिक परंपराएं न केवल जीवंत हैं, बल्कि आधुनिक तकनीक के साथ तालमेल बैठाकर और अधिक प्रभावशाली बन रही हैं। श्रद्धा और सुरक्षा के इस संगम में पूरी दुनिया पुरी की ओर देख रही है।

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